दुनिया के कई रंग कई रूप हैं प्यारे
इक वो ही तेरा है जो तेरा रूप संवारे
कुछ सोच के चल वक़्त के संग हाथ पसारे
जायेगा तू इस घर से कहाँ लौट के प्यारे ?
वो रूप कि जिसकी न कोई उम्र मुक़र्रर
जिसको न समझ पाया कोई ख्वाब से बेहतर
हम उसके लिए जैसे कोई ख्वाब बुनें हैं
ख्वाबों के लिए दर चुनें दीवार चुनें हैं
क्या हों दरोदीवार खबरदार सुनें हैं
क्यों मुझको मेरी तरह से कोई न पुकारे ?
हर शख्स को सौगात में कुछ रूप मिले हैं
कुछ फूल तो पत्थर की शिलाओं पे खिले हैं
उनको भी ठहर कर तो कभी कोई दुलारे
बहते हैं बहुत तेज़ यहाँ वक़्त के धारे
उतरा था कोई चाँद तेरे आंगने इक दिन
आया था कोई ख्वाब तुझे मांगने इक दिन
अब जी ले उसी ख्वाब के ख्वाबों के सहारे
जायेगा तू इस घर से कहाँ लौट के प्यारे ?
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