आग लग रही है धीमे धीमे
यार तेरी- मेरी जिंदगी में
मोह गए रंग भरे माटी के खिलौने
चांदनी नहाये हुए ओस के बिछौने
स्वप्न तो यही हैं सारी उम्र के सलोने
लौट कर न आये जंगलों से मृग छौने
प्यारे अपनी प्यास की नदी में
आग लग रही है धीमे धीमे
आदमी को ठीक से न वक़्त ने तराशा
घूम रहा गली गली भूखा और प्यासा
आदमी तो ढोल हुआ, जिंदगी तमाशा
हाल कोई पूछे कभी हम से ज़रा सा
बर्फ पर खड़े हो रोशनी में
आग लग रही है धीमे धीमे
प्यासी रहीं खून की सदा ही सभ्यताएं
आदमी को कैसे राग रागिनी सुनाएँ
हम हैं परेशान कैसे आदमी बचाएं
हो सके तो राह कोई आप ही बताएं
खून की ही प्यासी इस सदी में
आग लग रही है धीमे धीमे
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"प्यासी रहीं खून की सदा ही सभ्यताएं
जवाब देंहटाएंआदमी को कैसे राग रागिनी सुनाएँ
हम हैं परेशान कैसे आदमी बचाएं
हो सके तो आप कोई रास्ता बताएं
खून की ही प्यासी इस सदी में
आग लग रही है धीमे धीमे"
साधुवाद