गुरुवार, 10 फ़रवरी 2011

Ek Geet

एक ख़त जो किसी ने लिखा भी नहीं 
उम्र भर आंसुओं ने उसे ही पढ़ा 


गंध डूबा हुआ एक मीठा सपन 
कर गया प्रार्थना के समय आचमन 
जब कभी गुनगुनाने लगे बांस वन 
और भी बढ़ गया प्यास का आयतन 


पीठ पर कांच के घर उठाये हुए 
कौन किसके लिए पर्वतों पर चढ़ा ?


जब कभी  नाम देना पड़ा प्यास को 
मौन ठहरे हुए नील आकाश को
कौन संकेत देता रहा क्या पता 
होंठ गाते रहे सिर्फ आभास को 


मोम के मंच पर अग्नि की भूमिका 
एक नाटक समय ने यही तो गढ़ा
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