एक ख़त जो किसी ने लिखा भी नहीं
उम्र भर आंसुओं ने उसे ही पढ़ा
गंध डूबा हुआ एक मीठा सपन
कर गया प्रार्थना के समय आचमन
जब कभी गुनगुनाने लगे बांस वन
और भी बढ़ गया प्यास का आयतन
पीठ पर कांच के घर उठाये हुए
कौन किसके लिए पर्वतों पर चढ़ा ?
जब कभी नाम देना पड़ा प्यास को
मौन ठहरे हुए नील आकाश को
कौन संकेत देता रहा क्या पता
होंठ गाते रहे सिर्फ आभास को
मोम के मंच पर अग्नि की भूमिका
एक नाटक समय ने यही तो गढ़ा
000
उम्र भर आंसुओं ने उसे ही पढ़ा
गंध डूबा हुआ एक मीठा सपन
कर गया प्रार्थना के समय आचमन
जब कभी गुनगुनाने लगे बांस वन
और भी बढ़ गया प्यास का आयतन
पीठ पर कांच के घर उठाये हुए
कौन किसके लिए पर्वतों पर चढ़ा ?
जब कभी नाम देना पड़ा प्यास को
मौन ठहरे हुए नील आकाश को
कौन संकेत देता रहा क्या पता
होंठ गाते रहे सिर्फ आभास को
मोम के मंच पर अग्नि की भूमिका
एक नाटक समय ने यही तो गढ़ा
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