स्वप्न जो भी बंधे रेशमी डोर से
टूट कर गिर पड़ेंगे नयन-कोर से
और फिर हम न जाने कहाँ किस तरह
उम्र के जंगलों का सफ़र तय करें
बिम्ब जो भी उगा एक दर्पण हुआ
किन सुरों में बजे प्राण की बांसुरी
अब हमारे तुम्हारे अधर तय करें
प्यार को प्रार्थना जो नहीं मानते
वे समझ लो स्वयं को नहीं जानते
पीर को राजरानी बना कर जहाँ
रख सकें हम चलो वो नगर तय करें
दिन ढले तो किसी को ठहरना नहीं
शाम को गीत का रूप जिसमें मिले
हम चलो एक ऐसी बहर तय करें
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