शनिवार, 28 जनवरी 2012

Desh aur ham

वही जो आज इस बस्ती के लोगों को  खले होंगे 
ये आदमखोर जंगल में नहीं घर में पाले होंगे

जिन्हें हम भक्ति से जाकर चढ़ा आये शिवालों में
वो सिक्के खूब कोठों पर खना खन खन चले होंगे 
[जिन्हें विधान सभा या संसद भेज दिया]

तुम्हारे आइनों में शक्ल क्या हमको दिखे अपनी 
कि इनकी आदतों में हुस्न के सब चोंचले होंगे

हमारी कौम ने जो बाग़ सींचे थे लहू देकर
तुम्हारी हद में वो बेसाख्ता फुले फले होंगे

हमारे पास थोड़े लफ्ज़ हैं कहना बहुत कुछ है
हवन में हाथ औरों के भी मुमकिन है जले होंगे.
                                                - शतदल  

शुक्रवार, 25 फ़रवरी 2011

vo to sapnon ke saath rahta hai

वो तो अपनों के साथ रहता है/
यानी सपनों के साथ रहता है/

कोई सपना उसे मिला होगा 
जिसने कानों में कुछ कहा होगा 
उसके होठों को फिर छुआ होगा 
वो भी सपने के संग बहा होगा 

वो फसानों के साथ रहता है /

लाख़ सपने उसे बुलाते हैं 
गोद में रात दिन सुलाते हैं 
और जिसमे वो झूलना चाहे 
बस उसी  में उसे झुलाते हैं 

वो ख़ज़ानों के साथ रहता है /

फूल समझेंगे उसकी ख़ामोशी 
ख़ामुशी में है उसकी बाहोशी
जा के ठहरेगा किस ख़ज़ाने में 
उसका इक लफ़्ज़ है जो मयनोशी  

आसमानों के साथ रहता है /
वक़्त गर मिल सका तो पूछेंगे 
कौन कितनों के साथ रहता है?
०००

गुरुवार, 24 फ़रवरी 2011

Jayega tu is ghar se kahan?

दुनिया के कई रंग कई रूप हैं प्यारे 
इक वो ही तेरा है जो तेरा रूप संवारे 
कुछ सोच के चल वक़्त के संग हाथ पसारे 
जायेगा तू इस घर से कहाँ लौट के प्यारे ?

वो रूप कि जिसकी न कोई उम्र मुक़र्रर 
जिसको न समझ पाया कोई ख्वाब से बेहतर 
हम उसके लिए जैसे कोई ख्वाब बुनें  हैं 
ख्वाबों के लिए दर चुनें दीवार चुनें हैं 
क्या हों दरोदीवार खबरदार सुनें हैं 

क्यों मुझको मेरी तरह से कोई न पुकारे ?

हर शख्स को सौगात में कुछ रूप मिले हैं 
कुछ फूल तो पत्थर की शिलाओं पे खिले हैं 
उनको भी ठहर कर तो कभी कोई दुलारे 
बहते हैं बहुत तेज़ यहाँ वक़्त के धारे 
उतरा था कोई चाँद तेरे आंगने इक दिन 
आया था कोई ख्वाब तुझे मांगने इक दिन 
अब जी ले उसी ख्वाब के ख्वाबों के सहारे 

जायेगा तू इस घर से कहाँ लौट के प्यारे ?
000

मंगलवार, 22 फ़रवरी 2011

GEET

आग लग रही है धीमे धीमे 
यार तेरी- मेरी  जिंदगी में 

मोह गए रंग भरे माटी के खिलौने 
चांदनी नहाये हुए ओस के बिछौने 
स्वप्न तो यही हैं सारी उम्र के सलोने
लौट कर न आये जंगलों से मृग छौने

प्यारे अपनी प्यास की नदी में 
आग लग रही है धीमे धीमे 

आदमी को ठीक से न वक़्त ने तराशा 
घूम रहा गली गली भूखा और प्यासा 
आदमी तो ढोल हुआ, जिंदगी तमाशा 
हाल कोई पूछे कभी हम से ज़रा सा 

बर्फ पर खड़े हो रोशनी में 
आग लग रही है धीमे धीमे 

प्यासी रहीं खून की सदा ही सभ्यताएं 
आदमी को कैसे राग रागिनी सुनाएँ 
हम हैं परेशान कैसे आदमी बचाएं 
हो सके तो राह  कोई आप ही बताएं 

खून की ही प्यासी इस सदी में 
आग लग रही है धीमे धीमे 
000

शुक्रवार, 18 फ़रवरी 2011

Ghazalnuma geet

कितना दुश्वार है हर बात के क़ाबिल होना 

मुझसे पूछे कोई तन्हाई से महफ़िल होना 

उसको अंजाम तो मालूम है अपना लेकिन 
दरया क्यूँ चाहेगा इक लम्हा भी साहिल होना 

गुल तो गुल आंधियां नाराज़ हैं खारों पर भी 
अब ज़रूरी है चमन में मेरा दाखिल होना

सिर्फ़ उसके ही निशाँ पाए गए राहों पर 
जिसने मंज़ूर किया अपना ही क़ातिल होना 

उम्र के साथ ही एहसास बदल जाता है 
अब मुनासिब नहीं हालात से गाफ़िल होना 
000


सोमवार, 14 फ़रवरी 2011

Ek Geet

एक सपना उगा जो नयन में कभी 
आंसुओं से धुला और बादल हुआ 


धुप में छांह जैसा अचानक मिला 
था अकेला मगर बन गया क़ाफ़िला
चाहते हैं कि हम भूल जाएँ मगर 
स्वप्न से है जुड़ा स्वप्न का सिलसिला 


एक पल दीप कि भूमिका में जिया 
अंज लो आँख में नेह काजल हुआ 
०००  

Ek Geet

एक सपना उगा जो नयन में कभी 
आंसुओं से धुला और बादल हुआ 


धुप में छांह जैसा अचानक मिला 
था अकेला मगर बन गया क़ाफ़िला
चाहते हैं कि हम भूल जाएँ मगर 
स्वप्न से है जुड़ा स्वप्न का सिलसिला 


एक पल दीप कि भूमिका में जिया 
अंज लो आँख में नेह काजल हुआ 
०००