वही जो आज इस बस्ती के लोगों को खले होंगे
ये आदमखोर जंगल में नहीं घर में पाले होंगे
जिन्हें हम भक्ति से जाकर चढ़ा आये शिवालों में
वो सिक्के खूब कोठों पर खना खन खन चले होंगे
[जिन्हें विधान सभा या संसद भेज दिया]
तुम्हारे आइनों में शक्ल क्या हमको दिखे अपनी
कि इनकी आदतों में हुस्न के सब चोंचले होंगे
हमारी कौम ने जो बाग़ सींचे थे लहू देकर
तुम्हारी हद में वो बेसाख्ता फुले फले होंगे
हमारे पास थोड़े लफ्ज़ हैं कहना बहुत कुछ है
हवन में हाथ औरों के भी मुमकिन है जले होंगे.
- शतदल
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