हम ठहरे आवारा बादल
दुनिया की नज़रों में प्यारे तुम भी पागल हम भी पागल
हमने अपने जनम मरण का
अर्थ न जाना बोझ न ढोया
आखिर हम किसलिए सोचते
हमने क्या पाया क्या खोया
हम जैसों को रोक न पाई
दरवाजे की कोई सांकल
०००
बटोही! तेरी प्यास अमोल
नदियों के तट पर तू अपने प्यासे अधर न खोल !
जो कुछ तुझे मिला वह सारा
नाखूनों पर ठहरा पारा
मर्म समझ ले इस दुनिया का
सिर्फ वही जीता जो हारा
सागर के घर से दो आंसू , का मिलना क्या मोल ?
जल की गोद रहा जीवन भर
जैसे पात हरे पुरइन के
प्यास निगोड़ी जादूगरनी
जल से बुझे न जाय अगिन से
जल में आग, आग में पानी और न ज्यादा घोल.
०००
(ओशो कम्यून , पूना में कवि सम्मलेन जून ' १९८८) ०
इस नए सुंदर से चिट्ठे के साथ आपका हिंदी ब्लॉग जगत में स्वागत है .. नियमित लेखन के लिए शुभकामनाएं !!
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