मिलते हैं, हाँ मुझे मिलते हैं,
बरसात की ठंडी हवाओं में
जाड़े की नर्म धूप में
गर्मी की सुबहों में
ओस की बूंदों में
तुम्हारे सन्देश ...बराबर मिलते रहते हैं.
बरसात की बूंदों के साथ
बजते हैं वे शब्द जो आवारागर्दी करते हुए
भीग जाने पर
होठों तक नहीं आ सके थे
आते आते रह गए थे
बस आँखों में उनकी चमक / झलकने लगी थी
और महकने लगा था एक संगीत .......
शहर अभी भी वैसा ही घूमता है
घरों के भीतर और बाहर /
घर के दूसरे मोड़ पर
एक वह जो छतनार वृक्ष था
अब भी वहीँ है
लेकिन अब
उसका ठूंठ होते जाना मुझे अच्छा नहीं लगता
तुम्हें भी नहीं लगेगा,
क्योंकि सुबह - शाम वहां से आते - जाते
उसे भर आँख देखा है, मेरे साथ तुमने
खैर, मोड़ के दूसरी तरफ
अशोक के जो ऊँचे ऊँचे दरख्त
हरहराया करते थे
अब उनके साथ सिहरने वाले
मुस्कराने वाले
झूमने - गाने वाले लोग
पार्कों , फुटपाथों , सड़कों पर वहां नहीं हैं
लोग होते हुए भी वहां नहीं होते
सोचता हूँ - क्यों होती है
छतनार वृक्षों से लम्बी उम्र ऊँचे दरख्तों की ?
क्या मिलता है इन्हें लम्बे समय तक
प्रतीक्षारत खड़े रह कर ?
कुछ बच्चे हैं जो दिन के उजाले में
खेलते हैं वहां /
चोर - सिपाही , राजा - रानी , गुड्डा - गुडिया वाले खेल नहीं
लेकिन खेलते हैं
और शाम घिरते ही
अपने अपने घरों में बंद हो जाते हैं
बल्कि कर दिए जाते हैं /
उनके माँ - बाप खिड़कियाँ , दरवाजे, यहाँ तक कि रोशनदान तक बंद कर लेते हैं
मैं सोचता हूँ -
वहां खेलने वाले बच्चे
क्या पहचान सकेंगे
वृक्षों कि छाया
दरख्तों के गीत
हवाओं का संगीत
शाम क़ी चित्रकारी और
अंधेरों का रोमांच?
०००
बरसात की ठंडी हवाओं में
जाड़े की नर्म धूप में
गर्मी की सुबहों में
ओस की बूंदों में
तुम्हारे सन्देश ...बराबर मिलते रहते हैं.
बरसात की बूंदों के साथ
बजते हैं वे शब्द जो आवारागर्दी करते हुए
भीग जाने पर
होठों तक नहीं आ सके थे
आते आते रह गए थे
बस आँखों में उनकी चमक / झलकने लगी थी
और महकने लगा था एक संगीत .......
शहर अभी भी वैसा ही घूमता है
घरों के भीतर और बाहर /
घर के दूसरे मोड़ पर
एक वह जो छतनार वृक्ष था
अब भी वहीँ है
लेकिन अब
उसका ठूंठ होते जाना मुझे अच्छा नहीं लगता
तुम्हें भी नहीं लगेगा,
क्योंकि सुबह - शाम वहां से आते - जाते
उसे भर आँख देखा है, मेरे साथ तुमने
खैर, मोड़ के दूसरी तरफ
अशोक के जो ऊँचे ऊँचे दरख्त
हरहराया करते थे
अब उनके साथ सिहरने वाले
मुस्कराने वाले
झूमने - गाने वाले लोग
पार्कों , फुटपाथों , सड़कों पर वहां नहीं हैं
लोग होते हुए भी वहां नहीं होते
सोचता हूँ - क्यों होती है
छतनार वृक्षों से लम्बी उम्र ऊँचे दरख्तों की ?
क्या मिलता है इन्हें लम्बे समय तक
प्रतीक्षारत खड़े रह कर ?
कुछ बच्चे हैं जो दिन के उजाले में
खेलते हैं वहां /
चोर - सिपाही , राजा - रानी , गुड्डा - गुडिया वाले खेल नहीं
लेकिन खेलते हैं
और शाम घिरते ही
अपने अपने घरों में बंद हो जाते हैं
बल्कि कर दिए जाते हैं /
उनके माँ - बाप खिड़कियाँ , दरवाजे, यहाँ तक कि रोशनदान तक बंद कर लेते हैं
मैं सोचता हूँ -
वहां खेलने वाले बच्चे
क्या पहचान सकेंगे
वृक्षों कि छाया
दरख्तों के गीत
हवाओं का संगीत
शाम क़ी चित्रकारी और
अंधेरों का रोमांच?
०००
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें