दिन ठहरते नहीं हैं किसी मोड़ पर
क्या करें आंसुओं से उन्हें जोड़ कर
तुम मिले तो हुए दिन उमंगों भरे
चांदनी से धुले लाख रंगों भरे
जी रहे थे हमें भी अनूठे प्रहर
अनगिनत गुनगुनाते प्रसंगों भरे
प्राण से प्राण तक चल रही थी मगर
उठ गए तुम अधूरी कथा छोड़ कर
दिन फिसलते हुए जा रहे हैं जहाँ
आदमी की ज़रूरत नहीं है वहां
एक पल हम भले शीश पर बांध लें
पर समय को कभी बाँध पाए कहाँ
सोच कर देख लो क्या मिलेगा तुम्हें
प्यार के गुनगुने आचरण छोड़ कर ?
क्या करें आंसुओं से उन्हें जोड़ कर
तुम मिले तो हुए दिन उमंगों भरे
चांदनी से धुले लाख रंगों भरे
जी रहे थे हमें भी अनूठे प्रहर
अनगिनत गुनगुनाते प्रसंगों भरे
प्राण से प्राण तक चल रही थी मगर
उठ गए तुम अधूरी कथा छोड़ कर
दिन फिसलते हुए जा रहे हैं जहाँ
आदमी की ज़रूरत नहीं है वहां
एक पल हम भले शीश पर बांध लें
पर समय को कभी बाँध पाए कहाँ
सोच कर देख लो क्या मिलेगा तुम्हें
प्यार के गुनगुने आचरण छोड़ कर ?
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें